बच्चों की आलोचना न करें, उन्हें प्रोत्साहन दें!

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शंका

हमारे parents दूसरे बच्चों से हमें compare करते हैं। ‘दूसरे बच्चे कितना अच्छा काम कर रहे हैं’ यह कहते हैं, लेकिन हम कितना भी अच्छा काम कर लें तो उनको कुछ दिखता ही नहीं है, तो इसके प्रति हमारी क्या सोच रहनी चाहिए?

समाधान

यह शिकायत बहुत सारे बच्चों को है। मैं तो सोचता हूँ कि बच्चों से ज़्यादा आज पेरेंट्स की क्लास होनी चाहिये। कई मामलों में पेरेंट्स की कमजोरी दिखती है। एक अच्छे अभिभावक को आदर्श स्थापित करना चाहिए और बच्चों की अच्छाई की सदैव प्रशंसा करनी चाहिए, उनको प्रोत्साहित करना चाहिए। 

मैंने कुछ दिनों पहले अपने प्रवचन में कहा था बच्चों को criticize मत करिए, critiguide कीजिए। criticize और critiguide में मैंने अन्तर बताया। criticize का मतलब ‘तुम में यह कमी है, तुम यह नहीं करते, तुम पढ़ते नहीं, कुछ ऐसा नहीं करते, वैसा नहीं करते, तुम किसी काम के नहीं हो’ प्राय: अपने बच्चों के लिए माँ-बाप ऐसी बातें कर देते हैं, इसका बच्चों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अगर माँ-बाप अपने बच्चों को critiguide करें, मतलब उससे उसकी अच्छाइयों को पहले उभारें, फिर कहें ‘देखो तुम कितना अच्छा लिखते हो, तुम्हारी राइटिंग कितनी अच्छी है, तुम बोलते भी बहुत अच्छे हो, मैंने देखा जो काम कोई नहीं कर सकता वह काम तुम पल में समेट देते हो, जो काम दूसरे घंटे में करते हैं तुम्हें मिनट ही लगता है; कितना अच्छा करते हो, तुम पढ़ते भी हो, तुम्हारे मार्क्स कभी कम नहीं आए, बहुत अच्छे आते हैं लेकिन थोड़ा सा और अपना फोकस बनाओ और थोड़ा मन लगा कर पढ़ो तो तुम देखो उन लोगों से भी तुम्हारे नंबर अच्छे आएंगे, स्कूल में टॉप करोगे।’ बात वही है लेकिन ये critiguide है criticize नहीं। 

लोगों से एक सवाल करता हूँ – रोटी खाने बैठते हो तो पहले ग्रास में मिर्ची खाते हो या रोटी? क्या सबसे पहले मिर्ची मुँह में डालना पसन्द करते हो कि मिठाई? मिठाई ना। ऐसे ही किसी से कभी कोई बातचीत करो पहले उसका मुँह मीठा करो, बाद में, बीच में मिर्ची और खटाई खिला दो, चलेगा।

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