जैनागम के अनुसार पृथ्वी पर हो रही वर्तमान खोजों की प्रासंगिकता क्या है?

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शंका

अभी जो भी वैज्ञानिक खोज हो रही है-जैसे कि मंगल ग्रह पर पानी का मिलना, हमारा मंगल ग्रह पर जाना-उसको हम जैन धर्म से कैसे को-रिलेट कर सकते हैं?

समाधान

हमारे जैन शास्त्रों में जो आज जितने शास्त्र बचे हैं वह बहुत थोड़े बचे हैं। हम लोग जहाँ रह रहे हैं वह अशाश्वत पृथ्वी है और हमारे शास्त्रों में जो वर्णन है वह शाश्वत पृथ्वी का है। हमारे शास्त्र में इस बात का उल्लेख आता है कि जब यह धरती भोग भूमि से कर्म भूमि के रूप में परिवर्तित हुई तो एक योजन ऊपर उठ गई। भरत क्षेत्र का आर्य खंड एक योजन ऊपर उठ गया। एक योजन आर्य खंड के उठ जाने से यहाँ बहुत सारे भौगोलिक परिवर्तन हुए होंगे और हो सकता है जितने आज planets (गृह) हैं, उसी भौगोलिक परिवर्तन का ही कोई परिणाम रहा हो पर उन सबको हम निश्चय पूर्वक इसलिए नहीं कह सकते क्योंकि उनकी सूचनाएँ आज हमारे ग्रंथों में उपलब्ध नहीं हैं, वे ग्रन्थ लुप्त हो गए हैं यदि वैसे ग्रन्थ होते तो हम जरूर इसमें कुछ कहने में सक्षम होते।

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