द्विदल क्या होता है?

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शंका

कुछ लोग कहते हैं कि कच्चे दूध के ही दही के साथ द्विदल होता है और पक्के दूध के दही के साथ द्विदल नहीं होता है कई लोग कहते हैं गो रस मात्र में द्विदल होता है। इसमें सही क्या है?

समाधान

द्विदल के विषय में बहुत सारी बातें हैं। हमने दूध के सन्दर्भ में जो भी बातें समझी हैं उन्हें द्विदल के विषय में विशेष जानना है। आचार्य सूर्य सागर महाराज की कृति है संयम प्रकाश’, जो प्रत्येक व्रती को पढ़ना चाहिए। उसका पूर्वार्ध श्रावकाचार है और उत्तरार्द्ध मुनि-आचार है। बहुत अद्भुत ग्रन्थ है और इसे सभी को पढ़ना चाहिए। उसमें उन्होंने द्विदल के सन्दर्भ में बहुत अच्छा प्रकाश डाला है। मैंने भी द्विदल के विषय में जितना देखा उसका निचोड़ आपको बताता हूँ। दोनों तरह की बातें लिखी हैं। कच्चे दूध के दही के साथ या पक्के दूध के दही के साथ द्विदल तो दोनों में ही मानना चाहिए। आशाधर जी ने जो लिख दिया कि कच्चे दूध के साथ यदि हम लें तो द्विदल नहीं होता, ये जिनचंद्र सूरी की एक कृति है, जिसके आधार पर श्वेताम्बर मत समर्पित है, उसके अनुसार है। 

ऐसे कच्चे और पक्के प्रकार के दही में जीवोत्पत्ति होती है। आयुर्वेद का एक ग्रन्थ है ‘रसायन प्रदीप’ उसमें भी इस बात का उल्लेख किया है। यदि व्यक्ति कच्चे या पक्के, शीत या उष्ण दूध के दही से युक्त- (मुग्ध) आदि का सेवन करता है, तो उसके लिए अनेक बीमारियों का कारण बनता है। इसलिए कच्चा हो या पक्का- आशाधर जी ने जरूर लिखा है लेकिन फिर भी हमें दोनों को स्वीकार करना चाहिए। कच्चे दूध के दही का जहाँ तक सवाल है, तो जब कच्चा दूध ही अभक्ष्य है, तो उसका दही कैसे खायेंगे? दिगम्बर मान्यता के अनुसार दूध दोहने के उपरान्त ४८ मिनट के भीतर यदि उसे गरम न किया जाए तो वो दूध पीने योग्य नहीं है। तो जब कच्चा दूध ही अभक्ष्य है, तो उसका दही तो अभक्ष्य हो ही गया। 

द्विदल क्या है? बहुत सारे लोग नहीं जानते होंगे। दही या छाछ के साथ किसी भी प्रकार के काष्ठ यानि दुधलांग, दलहन को मिला दो जैसे मूंग, चना, उड़द या और भी कोई दलहन है उसको मिला दो (Mix) और उसमें अचार का संयोग हो तो उसमें कीड़े उत्पन्न हो जाते हैं और बहुत तेजी से होते हैं। उसे आप खा रहे है, तो आप जीव हिंसा के भागीदार है, यानि आप कीड़ों को खा रहे हैं। इसको बोलते हैं द्विदल या बेदल। इसे विवेकी श्रावक लोग नहीं खाते हैं। आप दही-बड़ा खाते हैं, आप बेसन की कढ़ी खाते हैं, दही का रायता खाते हैं; जिसमें बेसन की सामग्री रहती है। आपने इन चीज़ों को खाया और मुँह की लार (Saliva) लगी तो कीड़े पड़ते हैं।

तीतर और बटेर पालने वाले लोग ऐसा करते हैं। आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज जब ब्रह्मचारी थे तब उन्होंने प्रयोग किया और इस बात का उल्लेख अपने ‘सुदर्शनोदय’ ग्रन्थ में भी किया है। वो ब्रह्मचारी थे। तीतर-बटेर पालने वाले क्या करते थे? बेसन और छांछ का घोल मिक्स करके और उसको अलग-अलग रखते और उसमें थूक देते थे। थूकने के थोड़ी देर बाद उसमें कीड़े हो जाएं तो तीतर-बटेर उनके कीड़े निकाल निकाल के खाते थे, बड़े-बड़े कीड़े। 

ज्ञान सागर महाराज ने ब्रह्मचारी अवस्था में कच्चे दूध-दही और पक्के दूध-दही की बात को देखकर के प्रयोग किया तो उसमें पाया कि कच्चे दूध के दही में तो तुरंत कीड़े हो गये, पर पक्के दूध के दही में थोड़े विलम्ब से हुए, पर हुए तो ज़रूर हैं। यानि स्थान तो उनका बन ही गया। इसलिए इसको नहीं खाना ही श्रेयस्कर है। 

फिर दही बड़ा का क्या हो? तो एक काम करो पहले बड़ा खालो फिर पानी पीकर मुँह साफ कर लो, ऊपर से दही पी लो। हो गया दही बड़ा!

अब रहा सवाल गो रस के साथ। गो-रस में तो दूध, दही, छांछ, घी सब आ जायेगा। लेकिन अमर कोष के अन्तर्गत घृत आदि को गो रस में नहीं लिया। दही और छांछ को ही इसमें लेना। गो-रस उपलक्ष्य है। दही-छांछ के साथ द्विदल होता है, दूध के साथ नहीं कुछ लोग मानते हैं तो माने। उसका निषेध नहीं लेकिन इनका जो उल्लेख किया है, बहुत बड़ा शब्दकोष है, उसमें इस बात का उल्लेख है और उसको उसी तरीके से देखना चाहिए।

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