आत्मा के प्रकार और उसकी यात्रा को कैसे समझें?

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शंका

यह तो विश्व में करीब-करीब सभी लोग मानने लगे हैं कि आत्मा अजर है, अमर है, जिसका विनाश नहीं होता। तो प्रश्न यह उठता है कि अगर आत्मा एक पर्याय को छोड़कर दूसरी पर्याय में जाती है, तो उस आत्मा को कितना परिगमन करना पड़ता है, कितना भ्रमण करना पड़ता है? क्या इसकी कोई परिसीमा होती है? २-आत्मा के कितने प्रकार या भेद होते हैं? क्योंकि कहा जाता है कि आत्मा परमात्मा हो जाती है, बाहरी आत्मा होती है, अन्तरात्मा होती हैं, पापात्मा होती है- तो कितने भेद होते हैं? और ३- क्या अभव्य पुरुष भी परमात्मा बन सकता हैं?

समाधान

आपके तीन प्रश्न हैं और तीनों बड़े दर्शन से सम्बन्ध प्रश्न हैं। सबसे पहला सवाल- आत्मा की स्थिति क्या है? एक जन्म स्थिति से दूसरे जन्म स्थिति जाने में आत्मा की क्या स्थिति होती है? इसे समझने के पहले हम कुछ प्रक्रिया को समझें। संसार में जितनी भी आत्मा है वह सब देहधारी है। संसार के जितने भी प्राणी हैं सभी देहधारी हैं। और हमारा जो शरीर है वह दो तरह का है। एक यह जो स्थूल शरीर है- जो हमें दिखाई पड़ता है; इसके अलावा सूक्ष्म शरीर है, जो हमें दिखाई नहीं पड़ता। हर प्राणी, हर मनुष्य के भीतर तीन शरीर हैं- एक यह स्थूल और दो सूक्ष्म शरीर। एक शरीर वह जिससे हमारे इस स्थूल शरीर में ऊर्जा या प्रकाश होता है, जो हमारे शरीर के टेंपरेचर को मेंटेन करता है। इसे तेजस शरीर कहते है। और दूसरा है कारमण शरीर, जिसे कारण शरीर या संस्कार शरीर भी कहा जाता है। हमारी जब मृत्यु होती है, तो स्थूल शरीर छूटता है। आत्मा स्थूल शरीर को छोड़ देती है और सूक्ष्म तेजस और कारमन शरीर के साथ निकल जाती है। तेजस और कारमन शरीर के चले जाने के कारण ही मृत्यु के उपरान्त हमारा शरीर ठंडा पड़ जाता है। तो जो हमारे संस्कारों का शरीर है, वह हमारे साथ जुड़ा हुआ है। और उस संस्कार के शरीर के बल पर हम नए जन्म स्थान पर पहुंचते हैं। और वह हम इस जीवन में ही सुनिश्चित कर लेते हैं। हमें अगले जन्म में कहाँ जाना है, उसकी व्यवस्था यहाँ होगी, बिना रिजर्वेशन के यहाँ जर्नी नहीं होगी। टिकिट पहले सुरक्षित हो जाती है, समझ गए? तो हम अपने पूर्व जन्म में ही आगामी जीवन को सुनिश्चित कर लेते हैं। वहाँ हमारा यह संस्कार शरीर हमें पहुँचा देता है। और संसार में, पूरे ब्रह्मांड में कहीं भी जाने में हमें बहुत समय नहीं लगता। मैक्सिमम थ्री टाइम, तीन समय। तीन समय समयकाल की सबसे छोटी इकाई है।और यह समझ लो एक परमाणु एक दूसरे परमाणु को क्रॉस करने में जितना टाइम ले उसका नाम समय है-बहुत सूक्ष्म। ऐसे तीन समय। इतनी देर में आत्मा वहाँ पहुंचती है और आत्मा के पहुँचने के उपरान्त वह स्थूल शरीर के निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ कर देती है। नए स्थूल शरीर के निर्माण की प्रक्रिया में व कुछ भौतिक शक्तियों को ग्रहण करता है और कुछ पल में वह शक्तियाँ ग्रहण हो जाती है जिसके बल पर वह नए शरीर के निर्माण योग्य साधन को जुटाने में समर्थ हो जाती हैं। और फिर जीवन पर्यंत हमारे नए शरीर के निर्माण की प्रक्रिया चलती रहती है। और जब तक हमारी आयु है हम स्थूल शरीर के साथ रहते हैं। आयु पूर्ण होते ही स्थूल शरीर छूट जाता है और हम फिर संस्कार शरीर के बल पर अगले जन्म में जाते हैं। तो यह हमारे जन्म से जन्मांतर, एक जन्म स्थिति से दूसरी जन्म स्थिति तक पहुंचकर, वहाँ अपने शरीर के निर्माण की प्रक्रिया है। 

दूसरी बात, आत्मा के कितने प्रकार हैं? कुछ लोग कहते हैं आत्मा ही परमात्मा हो जाती है। देखिये आत्मा मूलतः एक है। लेकिन इस आत्मा की अवस्था को तीन स्तर पर विभाजित किया गया है। एक बहिरात्मा, दूसरी अन्तरात्मा, और तीसरी परमात्मा। बहिरात्मा वह है जो शरीर में ही आत्मा बुद्धि रखता हो। जो देह जगत के स्तर पर जीता है, वह बहिरात्मा। शास्त्रीय भाषा में वह मिथ्यादृष्टि कहलाता है। अन्तरआत्मा- जिन्हे शरीर से भिन्न आत्मा का ज्ञान हो, वह अन्तरआत्मा कहलाती हैं। और परमात्मा, जिन्होंने अपनी परम आत्मा को प्राप्त कर लिया अर्थात आत्मा में लगे कर्म-कलुष को जिन्होंने नष्ट कर दिया, वह परमात्मा। तो बहिरात्मा, अन्तरआत्मा और परमात्मा यह हमारी आत्मा के तीन स्तर हैं। 

अब आपका तीसरा सवाल है, क्या अभव्य परमात्मा हो सकता है? अभव्य की ऐसी बुद्धि ही नहीं होती कि वो अपनी आत्मा और शरीर के भेद को जान सके। वह शरीर में ही आत्मबुद्धि रखे रहता है, इसलिए वह आगे नहीं बढ़ पाता। वह बहिरात्मा ही बना रहता है। परमात्मा बनने का तो सवाल ही नहीं है।

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1 comment
  • Manish Koringa July 26, 2025 at 2:50 am

    Namaste ji

    Your Book is very nice vichar

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