साधु-सन्तों की निन्दा करने का फल क्या है?

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शंका

पहले श्रावक कभी भी साधु सन्तों की निंदा नहीं करते थे। परन्तु अब थोड़ा बहुत शास्त्रों का ज्ञान होने से या उन्हें वांछित सम्मान नहीं मिलने से श्रावक साधु सन्तों की निंदा करने लगते हैं। साधु-सन्तों की निंदा करने से कौन से कर्मों के बन्ध होते हैं?

समाधान

साधु-सन्तों की निंदा, निंदा तो किसी की भी करो, बड़ा निंदनीय कार्य है। जो निंदा करते हैं उनका जीवन निंदनीय हो जाता है और साधु सन्तों की निंदा करने का कुफल जानने के लिए रुक्मणी के पूर्व भवो को देखो। रुक्मणी ने एक भव में महारानी के पर्याय में एक मुनिराज की निंदा की। उसका परिणाम यह निकला कि मर कर अगले भव में कुत्तिया बनी, अकाल मौत की शिकार बनी। सुकरी बनी, अकाल मौत की शिकार हुई। गधी बनी, अकाल मौत की शिकार हुई। फिर दुर्गन्धा नाम की कन्या बनी। जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ी, उसके शरीर से इतनी तेज दुर्गन्ध निकालने लगी कि कोई उसके पास फटकना न चाहे और आगे चलकर के तो दुर्गन्ध इतनी तेज हो गई कि उसे गाँव से बाहर निकाल कर एक कुटिया में रख दिया गया, जहाँ संयोग से उन्हीं मुनिराज का सानिध्य उसे मिला। महाराज के उपदेश से उसका हृदय परिवर्तन हुआ और उसने महाराज जी के प्रवचन से अपने जीवन को बदल लिया और उनका धन्यवाद करके, उसने अब अपने पापों का प्रायश्चित्त किया। इस बार मरकर वह देवी हुई और आगे चलकर के वही रुकमणी बनी। 

लोग इन सब चीजों को समझें और उसी अनुरूप अपने जीवन को ढालने की कोशिश करें। तब हमारे जीवन में अनुकूल परिणाम घटित हो सकेंगे। इसलिए इस तरह का निंदा का कार्य कभी नहीं करना चाहिए। आपने कहा “लोग करते हैं”, इसलिए करते हैं क्योंकि कई तरह के धार्मिक लोग होते हैं। जो सच्चे धार्मिक लोग होते हैं, वे श्रद्धालु होते हैं और उनके अन्दर इस तरह की कोई दुर्बलता ही नहीं होती, दोष नहीं होता और कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनका attitude (मनोदृष्टि) professional (व्यवसायिक) होता है, वे साधु सन्तों के समागम में अपने मान-सम्मान में बढ़ाव के लिए जाते हैं और जब उनको उसकी कमी लगने लगती है, तो इस तरीके का कृत्य करने लगते हैं। 

कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बड़े अहंकारी प्रवृत्ति के होते हैं, वो जहाँ भी जाते हैं अपनी बात थोपना चाहते हैं। अगर उसको स्वीकार न किया जाएँ तो इस तरह कृत्य कर बैठते हैं। मैं इन सब लोगों को अधार्मिक नहीं, सच्चे अर्थो में प्रछन्न नास्तिक मानता हूँ। ऐसे लोग इस तरह के कृत्य करते रहते हैं और उसका कोई उपाय नहीं है।

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