शंका
निराकुलता और आत्म अनुभूति में क्या अन्तर है, क्या इसे एक माना जाये?
समाधान
जो निराकुल होता है वही आत्म अनुभूति कर पाता है और आत्म अनुभूति उसी को होती है जिसकी सारी आकुलतायें खत्म हो जाती हैं। निराकुलता को हम दो रूप में ले सकते हैं, एक पूर्ण निराकुलता और एक आंशिक निराकुलता। मनुष्य की आसक्ति जैसे-जैसे घटती जाती है उसकी आकुलताऐं मन्द होती जाती हैं पर समता रूप निराकुल परिणाम लेश्या की विशुद्धि से भी हो सकते हैं। आत्म अनुभूति गुण स्थान की विशुद्धि से होती है। निराकुलता अभव्य जीव में भी हो सकती है पर आत्मअनुभूति भव्य, वीतराग, सम्यकदृष्टि, मुनि महाराज में ही हो सकती है, हर किसी में नहीं हो सकती। पर निराकुलता आत्मअनुभूति का पूरक तत्त्व है, ऐसा हम समझ सकते हैं।
Leave a Reply