धार्मिक ट्रस्ट का स्वरुप कैसा हो?

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शंका

एक गृहस्थ अपने गृहस्थ और चिर उत्तरदाइत्वों से पूर्ण होने के उपरान्त निराकुल हो करके धर्म साधना करना चाहता है। ऐसी स्थिति में वह अपनी निजी चल-अचल सम्पत्ति का एक ट्रस्ट बनाकर के समाज सेवा के लिए गठन करना चाहता है। ताकि वह निश्चिंत होकर के आगे धर्म साधना कर सके तो उस ट्रस्ट के गठन का क्या स्वरूप होना चाहिए? क्या यह उसकी यह सोच उचित है?

समाधान

ट्रस्ट के विषय में पंडित जगन मोहनलाल सिद्धान्त शास्त्री कहा करते थे कि-“ट्रस्ट कभी नहीं बनाना चाहिए”। उनका कहना था कि-“अपनी भावी पीढ़ी को धर्म से लगाए रखना चाहते हो तो ट्रस्ट मत बनाओ” क्योंकि तुम ट्रस्ट बना दोगे उस ट्रस्ट में सम्पत्ति होगी, तो आने वाली पीढ़ियाँ उसी ट्रस्ट की सम्पत्ति से दान करके नाम कमा लेंगी। अपने संचित द्रव्य का उपयोग करना भूल जाएँगी। यह बात बहुत दमदार दिखी। इस दृष्टि से देखा जाये तो ट्रस्टों का गठन कम करना चाहिए। 

मैंने इस पर विचार किया, कि ऐसा करने से बहुत से ऐसे विषय हैं, जो दीर्घ कालावधी तक चलने वाले हैं, उनका सञ्चालन नहीं हो सकता। तो मैंने इसमें एक निचोड़ निकाला कि व्यक्ति यदि ट्रस्ट बनाए तो वह ट्रस्ट उसका पारिवारिक ट्रस्ट न हो, सार्वजनिक ट्रस्ट हो। उसका विधान ऐसा बन जाए जिसमें कभी कोई राजनीति हावी न हो पाए। और जिस उद्देश्य से वह ट्रस्ट का गठन किया जा रहा है या कर रहे हैं उस उद्देश्य की पूर्ति ‘यावत चंद्र दिवाक‘ होते रहे। इस भाव से यदि आप ट्रस्ट को बनाते है, तो कोई दिक्कत नहीं। परिवार तक सीमित क्यों न रखे? इसलिए क्योंकि परिवार के लोग भविष्य में ट्रस्ट को अपनी सम्पत्ति मान लेंगे। दूसरी बात- परिवार चढ़ता है, उतरता है, समाज हमेशा हरी-भरी बनी रहती है। 

मैं ऐसे कई ट्रस्ट के ट्रस्टियों को जानता हूँ, जिनके पूर्वजों ने आज सौ- सवा सौ- डेढ़ सौ साल पहले ट्रस्ट बनाया, आज वे उस ट्रस्ट की सम्पत्ति का उपभोग कर रहे हैं, कई जगह तो मन्दिर के लिए समर्पित ट्रस्ट की सम्पत्ति को बेचकर खा भी गए हैं। नरक के पात्र बने। जिन्होंने उस समय अपनी सम्पत्ति को लगाया, ट्रस्ट बनाया, उनके बहुत पवित्र भाव रहे होंगे, लेकिन परिवार जन के लिए ही सीमित कर दिया, हीन-पुण्य जीव उसमें आए, उनकी बुद्धि भ्रष्ट हुई और बर्बाद हो गए। इसलिए या तो ट्रस्ट बनाओ मत, जो करना है अभी अपने सामने किसी अच्छी संस्था को दे दो! और बनाओ तो उस ट्रस्ट का सञ्चालन अपने परिवार के हाथ में मत दो, उसमें आप के परिवार के सदस्य हों, लेकिन परिवार के लोगों का हो बोलबाला न हो, समाज के अच्छे लोग हों, और ऐसा विधान बना दो की सदैव समाज के अच्छे लोगों को उसमें लिया जाये, इलेक्शन न हो, सिलेक्शन हो! ऐसे ट्रस्ट अपनी उद्देश्यों की पूर्ती में आगे बढ़ता रहेगा।

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