शंका
आज तक हम लोग आचार्यश्री के संघ के साधुओं के साथ ही रहे हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि अन्य संघों के साधु भी मन्दिर में आते हैं, और बीस पन्थी आम्नाय से पूजा भी कराते हैं। कुछ माताजी जो आहार के लिए निकलती हैं उनकी परिक्रमा आदि करवाते हैं। उस समय की स्थिति ये होती है कि हमारे घर परिवार के लोग जाते हैं उनको मजबूरन ये करना पड़ता है?
समाधान
सभी साधुओं की अपनी क्रिया और चर्या है। समाज को चाहिए कि जिस साधु की जैसी क्रिया है, अपने विचार विवेक से व्यवहार कुशलता पूर्वक उसका निर्वाह करें, उलझे नहीं और उलझाएँ नहीं।
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