शंका
शुभास्रव, शुभ-उपयोग और शुद्ध-उपयोग को कैसे परिभाषित करें?
समाधान
शुभास्रव, शुभ-उपयोग और शुद्ध-उपयोग में बड़ा अन्तर है। शुभास्रव यानि पुण्य का आश्रव! यह शुभ प्रवृत्तियों में होता है। मन, वचन, काय की शुभ प्रवृत्ति से होने वाले आस्रव का नाम शुभास्रव है, जो पुण्य के फलस्वरूप है।
शुभोपयोग अर्थात् धर्मानुराग युक्त सम्यक् दृष्टि की जो परिणति है, उसका नाम शुभोपयोग है। शुभोपयोग में पुण्य का आस्रव तो होता है ही, पाप का क्षय भी होता है। शुभोपयोग क्रिया एक ऐसी क्रिया है, जो पुण्य के बन्ध के साथ-साथ पाप का क्षय भी करती है।
शुद्धोपयोग यानि राग रहित उपयोग! जहाँ बन्ध नहीं केवल निर्जरा ही निर्जरा है।
Leave a Reply