हमारी पीढ़ी के जो बच्चे होते हैं वो तो बहुत संस्कारी हैं और वो बच्चे अपने बच्चों को भी उतना ही संस्कारी बनाना चाहते हैं। लेकिन आजकल के बच्चे इतनी तार्किक बुद्धि वाले हैं कि उनको convince करना नामुमकिन सा होता जा रहा है। क्या यह काल का प्रभाव है या कोई और कारण है?
यह संगति का प्रभाव है, काल का नहीं। संगति और वातावरण से लोगों की सोच बहुत बुरी तरह प्रभावित हो रही है। तो हमें अपने बच्चों को प्रारम्भ से ही अच्छे संस्कार देने की जरुरत है। उन्हें ऐसे समागम और संगति में लाने की आवश्यकता है जिससे वे इनसे अप्रभावित हों। क्षेत्र, काल की सीमाएँ मनुष्य के संस्कार के आगे बाधक नहीं बनती। मेरे सम्पर्क में ऐसे भी लोग हैं जो भारत से बाहर रहकर भी अपने संस्कारों में दृढ़ हैं।
अमेरिका जैसे देश में रहते हुए भी रात्रि भोजन नहीं खाना, प्याज़-लहसुन नहीं खाना, अभक्ष्य वस्तु का सेवन नहीं करना, दशलक्षण में दस-दस उपवास करना और देव-दर्शन जैसी क्रिया करना, भगवान की पूजा जैसे कार्य करने वाले लोग, जो पढ़े – लिखे हैं, बहुत अच्छे पद पर हैं वो लोग भी ऐसा कर रहे हैं। इसमेंं कारण क्या है? वो उनके संस्कार की प्रगाढ़ता है। तो संस्कार अच्छे हों और ऐसे संस्कार हों जो संगति से प्रभावित न हों, तो बदलाव आएगा।
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