अकाल मृत्यु क्या होती है?

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शंका

अकाल मृत्यु क्या होती है?

समाधान

सन १९८७ में ललितपुर में वाचना चल रही थी। बड़े-बड़े विद्वान थे। वाचनाओं के उस क्रम में जब आख़िरी में शंका समाधान होता था, तब एक विद्वान उसका समाधान देते थे और अन्त में आचार्य महाराज का उद्बोधन होता था। पंडित फूलचंदजी सिद्धांत शास्त्री व्यासपीठ पर बैठे थे। किसी ने पूछा, पंडित जी से कि- “अकाल मरण होता है कि नहीं?” उन्होंने जवाब दिया “अकाल मरण निश्चय से नहीं होता, व्यवहार से होता है।” आचार्य महाराज ने बीच में ही जवाब दिया, “पंडितजी! निश्चय से तो मरण ही नहीं होता।” जनम और मरण यह दोनों व्यवहार हैं। व्यवहार से मरण होता है, तो अकाल मरण भी होता है। 

मैं आपको सिद्धान्त शास्त्र की बात कहूँ, अकाल मरण को कदली घात मरण की संज्ञा दी गई। कदली घात का मतलब जैसे केले का पेड़ होता है, वह एक बार फलता है, दोबारा नहीं फलता। जैसे ही फल दे चुकता है उसके बाजू में एक दूसरा पेड़ उग आता है। दूसरा पेड़ जो उगा है उसे पर्याप्त रस मिले और वह तेजी से बढ़े इस भाव से किसान उस हरे-भरे केले के पेड़ को काट डालता है। जैसे वह हरा भरा पेड़ असमय में कट गया इसी तरह जिसका हरा भरा जीवन असमय में नष्ट हो जाता है, उसको कदली घात मरण कहते हैं।

आप सुनकर आश्चर्य करोगे, धवला की दसवीं पुस्तक में ऐसा लिखा है कि ‘एक जीव जिसने कोटी पूर्व की आयु बाँधी यानि मनुष्य या तिर्यंच जिसने कर्मभूमि की उत्कृष्ट आयु का बन्ध किया, ऐसा जीव जो कोटि पूर्व की आयु बाँधी वह एक अन्तर मुहूर्त में कोटि पूर्व की आयु को नष्ट करके मर सकता है। करोड़ों पूर्व वर्ष तक जीने की योग्यता रखने वाला जीव एक अन्तर मुहूर्त में मर जाता है, कदली घात! कदली घात में आयु का क्या होता है? कदली घात में आयु असमय में खिर जाती है। कैसे खिरती है? 

जैन परम्परा और वैदिक परम्परा में एक अन्तर है। वैदिक परम्परा में भी अकाल मरण माना गया। लेकिन, उनके यहाँ अकाल मरण मानने पर ऐसा कहा जाता है कि जब उनका अकाल मरण होता है, तो वह अपनी शेष आयु प्रेत योनि में भोगते हैं। जैन धर्म कहता है, नहीं आयु कर्म के क्षय से मरण होता है। जब तक आयु का एक भी परमाणु शेष है तब तक मरण नहीं होगा। पर यह आयु का क्षय समय से भी होता है और असमय से भी होता है। जो समय से होता है उसको बोलते है निरुपक्कम आयु और जो असमय में होता है उसको बोलते है शोपक्रम आयु।

जैसे आपके पास गैस है; एक सिलेंडर में साढे १५ लीटर गैस होता है। अब वह सिलेंडर ठीक ढंग से काम करें, बर्नर आपका ठीक हो तो मेरे ख्याल से १५ दिन २० दिन आपका गैस चलता होगा। लेकिन, आपका बर्नर लीक करें तो क्या होगा? गैस जल्दी जल जाएगी। बर्नर लीक करने के बाद जब गैस जल्दी जलती है और यदि टंकी burst (फट) हो जाए तो? १५ दिन तक चलने वाली गैस १५ सेकंड में भी स्वाहा हो सकती है। पर गैस जली न? इसी तरह आयु कर्म के क्षय का कोई निश्चित काल नहीं है। वह कभी भी हो सकती है; अकाल में भी हो सकता है। लेकिन, यह अकाल मृत्यु कर्म भूमि के मनुष्य और तिर्यंचों को ही होती है। देव, नारकी और भोग भूमि के जीवों का अकाल मरण नहीं होता और जो चरम भव वाले तीर्थंकर होते हैं उनका अकाल मरण नहीं होता।

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