शंका
जब हम सामायिक या ध्यान करने बैठते थे, तीन लोकों का दर्शन या जिन प्रतिमा या १२ भावनाओं का चिंतन करते थे। लेकिन जब से चतुर्मास प्रारंभ हुआ है और जिनवाणी या पारस चैनल के माध्यम से आप के प्रवचन सुनने का अवसर मिला है तब से सामायिक या ध्यान में केवल आपकी सूरत व आपकी चार बातें घूमती रहती हैं। कृपया मार्गदर्शन दें कि यह किस प्रकार का ध्यान है और क्या हमें इस ध्यान से और ऊपर उठना है?
समाधान
किस प्रकार का ध्यान है यह तो पता नहीं लेकिन इतना पता है कि आपके मन में गुरु का ध्यान बैठ गया और जिसके हृदय में गुरु बन जाते हैं तो कहते हैं ‘ध्यान मूलम गुरु कृपा!’ गुरु की कृपा ही ध्यान का मूल है। जो एक बार गुरु की कृपा पा लेता है वह ध्यान की ऊँचाइयों को छू लेता है।
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