जैन धर्म में नारी का स्थान

150 150 admin
शंका

क्या जैन धर्म में नारी के अधिकारों का विरोध है? हमारी पूजा में भी नारी को विषबेल कहा है।

समाधान

नारी के अधिकारों का निषेध! यह प्रश्न ही मैं गलत मानता हूँ। इस प्रश्न में आपत्ति है। नारी अधिकार की बात क्यों आती है? अधिकार की बात कभी आनी ही नहीं चाहिए। जैन धर्म में नारी को जितना सम्मान दिया गया है उतना किसी इतर धर्म में नहीं दिया। यह लिखा गया है कि- ‘नारी गुणवती धत्ते सृष्टिरग्रिमम पदम‌‌!’ गुणवान नारी सृष्टि में अग्रिम पद को धारण करती है। हमारे तीर्थंकरों ने अपने समोशरण में नारियों को उच्च स्थान दिया। उन्हें दीक्षित किया, आर्यिका बनाया। भगवान ऋषभदेव ने राज्य अवस्था में जो शिक्षा दी वह सबसे पहले ब्राह्मी और सुंदरी को दी, भरत-बाहुबली को बाद में। जो आज हमें अक्षर और अंक विद्या प्राप्त हुई है, वह ब्राह्मी और सुंदरी के प्रताप से हुई हैं। तो नारी का इससे बड़ा स्थान क्या होगा!

नारी का जैन धर्म स्थान है, जहाँ तक सवाल है कि -‘नारी को विषबेल कहा है”, वह नारी विषबेल नहीं है नहीं है, नारी एक प्रतीक है, मनुष्य की वासना विषबेल है। यदि नारी विषबेल है, तो उसमें उगने वाला फल विषफल होगा, तो पुरुष विषफल हो जाएगा। ऐसा कतई नहीं हो सकता। इसलिए नारी विषबेल नहीं, नारायण की जननी है। 

नारी ही नारायण को जन्म देती है। इसलिए जैन परंपरा में नारी का स्थान सदैव उच्च रहा। “महाराज! स्त्रियों की मुक्ति के लिए तो निषेध किया”, नारी की मुक्ति का निषेध इसलिए नहीं क्योंकि वह नारी है। मुक्ति तो न पुरुष को मिलती है न नारी को मिलती है। पुरुष भी मुक्त नहीं होता, नहीं तो सारे पुरुष मोक्ष चले जाते। मुक्ति ना स्त्री को है, ना स्त्री को, मुक्ति वीतराग को है, निर्ग्रंथ को है। वीतरागी होने के लिए दिगंबर होना पड़ता है, स्त्री की पर्यायगत दुर्बलता ऐसी है कि वह निर्ग्रंथ दिगंबर नहीं हो पाती, इसलिए मोक्ष में थोड़ी पिछड़ जाती है, पर नारी का स्थान पीछे कहीं नहीं है। वह पुरुष की प्रेरणा है, इसलिए नारी को जैन परंपरा में हमेशा आदर्श रूप में गिना गया। 

लेकिन अभी जो प्रश्न आया – नारी के अधिकारों का; यह जो अधिकार है, मुझे इसमें बड़ी आपत्ति है। अधिकार का मतलब क्या है? नारी अधिकार का मतलब यह है कि पुरुषों की बराबरी करना, जो काम पुरुष करें वह काम स्त्री करे, नारी अधिकार मंच के लोगों का यही कहना है। इसी को नारी की सुरक्षा और इसी में नारी की पूर्णता मानते हैं, यह भ्रम पूर्ण अवधारणा है। मेरी दृष्टि में नर और नारी दोनों प्रकृति की श्रेष्ठ रचनाएँ हैं और दोनों का समान महत्व है। अगर प्रकृति में नर नहीं हो तो प्रकृति का संतुलन बिगड़ेगा और नारी ना हो तो प्रकृति का संतुलन बदलेगा। दोनों हैं तो सृष्टि का संचालन चल रहा है, लेकिन नर नर है, नारी नारी है, दोनों समान हैं। ना नर नारी से कम है और नारी नर से कहीं कम है। नर का काम नर कर सकता है और नारी का काम नारी। दोनों बराबरी है, इनमें आपस में कोई होड़ होना ही नहीं चाहिए।

लेकिन पुरुष प्रधान समाज व्यवस्था के कारण के महिलाओं के अंदर एक कुंठा हो गई। नारी के मन में एक यह दुर्भाव जम गया कि “हम नारी हैं इसलिए कमजोर हैं, हमारी महत्ता तब है जब हम नर जैसे काम करें। इसका ही परिणाम है कि कोई झांसी की रानी बनती है, तो उसके गीत गाए जाते हैं, आशा गोपालन होती है या किरण बेदी होती है, तो उसकी प्रशंसा की जाती है; पर आशा गोपालन, किरण बेदी या झांसी की रानी लाखों में एक होती है। लेकिन हर कोई एक अच्छी माँ होती है, एक अच्छी ग्रहणी होती है, अच्छी एक बहन होती है, अच्छी एक पत्नी होती है, उसकी प्रशंसा कभी नहीं की जाती, जो घर घर में होती है। 

नारी का सबसे अच्छा रूप और उत्कृष्ट रूप क्या है?, माँ का! अपने घर के संचालन की जो आंतरिक व्यवस्था होती है, वह एक केवल नारी ही कर सकती है। नारियों को चाहिए कि नारीयोचित कार्यों में आगे बढ़े, वह पुरुषों का काम करने की कोशिश ना करें। आज नारी नर बनने की होड़ में लगी है, नतीजा यह निकल रहा है कि नर वह बन नहीं पा रही है और नारी वह रह नहीं पा रही है।

आप नारी हो, जो आप कर सकती हैं, वह पुरुष नहीं कर सकता। नर का काम न करें, नारी का काम नारी करें! नारी नर बनने की होड़ में क्यों लग रही है? जिस दिन देश की सभी नारियाँ नर बन जाएँगी, उस दिन समाज में विप्लव खड़ा हो जाएगा। क्योंकि नारी के नर बनते ही उसकी ममता खत्म हो जाएगी। उसकी करुणा खत्म हो जाएगी, उसके अंदर की क्षमा खत्म हो जाएगी, उसकी सहिष्णुता खत्म हो जाएगी। और जिस समाज से ममता, क्षमा, सहिष्णुता और करुणा जैसे गुण नष्ट हो जाएँगे, उसके बाद जो समाज बचेगा वह बर्बर और क्रूर समाज होगा।

क्या आप चाहते हैं ऐसा? इसके कब बच पायेंगे? जब नारी सुरक्षा होगी तब, नहीं! जब नारीत्व की सुरक्षा होगी तब। आज नारी सुरक्षा की बात की जाती है पर नारीत्व उतना ही असुरक्षित हो रहा है। अपने आप को आधुनिक कहने वाले तथाकथित लोग, जो एक तरफ नारियों के उत्थान की पैरवी करते हैं, अपना पक्ष रखते हैं; वहीं दूसरी तरफ आज नारी को विज्ञापन का समान बनाया जा रहा है। कहाँ है नारी का आदर्श? 

क्या अपने अंग का प्रदर्शन करने में ही नारी की पूर्णता है? शेविंग ब्लेड के विज्ञापन में नारी आती है, ये क्या है? क्या यही है नारी का सम्मान? मैं कहता हूँ तथाकथित नारी अधिकारवादियों ने नारियों का जितना पतन किया है उतना तो हमारे परंपरा और रूढ़िवादी लोगों ने भी नहीं किया। हमें इस पर बहुत गंभीरता से विचार करना चाहिए।

नारी का उत्थान कब होगा? नारी के पांच रूप हैं- कन्या, पत्नी, माँ, भार्या और कुटुम्बनी! नारी की सफलता तभी है, जब वह अपने पांचों रूपों में खरे उतरे। सबसे पहला रूप है कन्या का! कहा जाता है उभय – कुल – विवर्धिनी कन्या! नारी का पहला रूप है कन्या! कन्या को देहली का दीपक कहा गया है, जो दोनों तरफ उजाला करती है, बाहर भी, भीतर भी। उभय – कुल – विवर्धिनी कन्या! जब तक विवाह नहीं होता तब तक अपने पिता के कुल को, विवाह के उपरांत अपने पति के कुल को रोशन करने का सौभाग्य कन्या को होता है। भारतीय परंपरा में विशेषकर जैन परंपरा में कुंवारी कन्या को ‘सचित्त मंगल’ कहा है। नारी मंगल है जो तुम्हारा अमंगल टालती है। इससे बड़ा गौरव विश्व में कहीं है? कौन है आदर्श कन्या? जो अपने कुल के संस्कारों के अनुरूप चलती है; शिक्षित और संस्कारित होने के साथ मर्यादा का पालन करती है; अपने शील और सदाचार पर सदा दृढ़ रहती है। वही कन्या एक आदर्श कन्या होती है।

यही कन्या जब विवाह के बंधन में बंधती है, तो एक पत्नी बनती है। आदर्श पत्नी कौन होती है? जो अपने पति के साथ उसकी सहयोगिनी और सहगामिनी बनकर के चलती है। पति पत्नी एक दूसरे के पूरक होकर के जिएँ। आदर्श दंपति का मतलब केवल यौन सदाचार तक सीमित रहना नहीं है; बल्कि एक दूसरे की भावनाओं का ख्याल रखते हुए एक दूसरे के प्रति संपूर्णतया समर्पित हो कर जीना है। तो विवाह उपरांत वह एक आदर्श पत्नी बने।

जब पत्नी बनती है, तो कालांतर में माँ बनती है और एक माँ जो अपने बच्चे का पालन पोषण कर सकती है वह कोई दूसरा नहीं कर सकता। एक माँ जितने अच्छे से अपनी संतान का पालन पोषण कर सकती है उतना कोई दूसरा नहीं कर सकता। रूस में एक शोध हुआ; बंदरों के श्रद्ध-प्रसूत कुछ बच्चों को तो उनकी माओं के पास रखा गया और कुछ को कृत्रिम मशीनी बंदरिया के पास रखा गया। सबको एक सा पोषण दिया गया। जिन बच्चों को अपनी माँओं के पास रखा गया उनका शारीरिक विकास के साथ साथ भावनात्मक विकास भी हुआ। और जिनको मशीनी बंदरिया के पास रखा गया उनका शारीरिक विकास तो बहुत अच्छा हुआ मानसिक विकास नहीं हुआ। एक रहस्य की बात आपको बताता हूँ, फ्रांस में सबसे ज्यादा क्राइम होता है और वहाँ सबसे ज्यादा अवैध संतान होती हैं। उस पर रिसर्च हुआ कि ऐसा क्राइम क्यों होता है? पता लगा कि वहाँ अवैध संतानों को अनाथालय में पाला जाता है, तो वहाँ उनका शारीरिक विकास तो हो जाता है भावनात्मक विकास नहीं होता। इस कारण से वे नैतिक और चारित्रिक रूप से पतित हो जाते हैं क्योंकि उनको उनकी माँ का प्रेम नहीं मिलता, उन्हें माँ का संस्कार नहीं मिलता। माँ अगर बच्चे को ना मिले तो बच्चा अपराधी बन जाए, कृतज्ञ हो जाओ अपने माँ के प्रति! जिसने तुम्हें इतना प्यार और सम्मान दिया कि तुम एक अच्छे इंसान बन सको। यह काम माँ कर सकती है पिता नहीं कर सकता। प्रकृति सुलभ कार्य है। तो वह एक अच्छी माँ बने।

उसके उपरांत वह भार्या बनती है। जब पूरे परिवार के भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी उसके ऊपर होती है, तो वह भाग्य कहलाती है। 

इसके उपरांत हमारी भारतीय परंपरा में एक ग्रहणी को पूरे कुटुंब की प्रमुख के रूप में कुटुंबनी का दर्जा दिया गया; जिसके हाथ में घर के भंडार की चाबी हो, वह कुटुंबनी है। इससे बड़ा उत्कृष्ट सम्मान एक स्त्री को और क्या मिल सकता है! यह मिलता है, मिलेगा, इसलिए आप अपने आपको कहीं कमजोर आंकिये। अपने आप को कमजोर न समझें। कहते हैं

नारी है नर से बड़ी अधिकारी, 

एक नहीं दो-दो मात्रा भारी l।

नर में २ मात्रा, नारी में ४ मात्रा! लेकिन मैं कहता हूँ यह सब बातें ठीक नहीं, सब बराबर हैं। कवि गिरिधर की एक कविता याद आ गई सुनाता हूं।

जीवन गाड़ी ज्ञान धुरी, पहिये दो नर नारी

सुख मंज़िल तय करन हेतु तुम रहूं इन्हें सम्हारी।

तुम रहो इन्हें संभारी लगे ना ऊपर नीचे,

दोनों सम जब होए चलो तब आँखें मींचे।।

कह गिरधर कविराय सुनो सब धारो निज मन,

या विधि होय नर – नारी सफल तब निश्चित जीवन।।

Share

Leave a Reply